छांव-ओ-शहर

दो शब्दों में कहते हैं बातें सभी 
बाक़ी मन से यूँही सूगबुगाते रहे 
बात आगे बढ़ाने को कुछ भी था
मन की दुविधा यूँही बस छुपाते रहे 

रिश्ते जुड़ते रहे यादें छूटी नहीं 
बाक़ी सीमा से आगे जा ना सके
राह में कोई ठहराव था ही नही
फिर भी छांव-ओ-शहर ढुढते ही रहे 

यूहीं रिश्ते हमेशा से जुड़ते नही 
कुछ तो होगा ये बन्धन मिटता नही 
रास्ते सबके अपने हैं अपने रहे 
फिर भी गुमनाम राहों में कोई नही 

एक सुहाना ये अहसास पाया कभी
मन में होगा, निभेगा, दिखेगा नही 
गीत ग़ज़लों में यूँही लिखा जायेगा 
फिर भी तु देख ले तो छुपेगा नही 

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