बरस लगे

बरस लगे उन शब्दों को लौंटने में 
जो आस के कुछ रुप थे
कुछ तो दिल दुखे थे दोनों तरफ
जो विश्वास के प्रतिरूप थे 

मन कलह की कड़वाहट में दिखा
तेरे डूबते नाव के इशारे से 
कुछ तो ग़लतफ़हमी थी दोनों तरफ
जो स्नेह के प्रतिरूप थे 

शब्दों के बाण चुभे होगें तय था
तेरा रास्ता बदल देने से 
कुछ जो अनमिट रहा दोनों तरफ
आज भी छूटता नही.... 


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