मौन

मन की आवाज ने यूं पुकारा तुझे
जब भी खामोश थे सोचते ही रहे 
पास आकर जहाँ लड़खड़ाये कदम 
वो कदम भी बड़े बस तुम्हारे लिये 

मन में यूँ रुप को बस सजाया तेरे
जब भी सोचा तो एक पावनता रही
खोजा जाकर यहां भी उस स्नेह को
वो स्नेह भी रहा बस तुम्हारे लिये 

मन ने शाम-ओ-शहर यूँ पुकारा तुझे
जब भी आवाज दी ना-सुनी ही रही
बड़बड़ाया जहाँ बोलते मौन को 
रहा मौन भी मन तुम्हारे लिये 

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