कशमकश

ज़मीं में धँस जाऊँ या की उग आऊँ 

कशमकश है जीवन, कोशिशें कब हारी हैं


खुद से संघर्ष करूँ या दूर भाग जाऊ 

कश्मकश है जीवन, लडना कब मना है


बढता, दौड़ता रहूँ या कि थम जाऊँ 

कशमकश है जीवन, सोच कब रुकी हैं 


चाहूँ न चाहूँ या कि विरक्त हो जाऊ

कशमकश है जीवन, समर्पण कब हारा है


रिश्ते हो न हो या कि एकाकी रहूँ 

कशमकश है जीवन, स्नेह कब भूला है 


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