गुजरे साल


ठहरा हूँ वहाँ जहाँ छोड़ चला था
यादों के ख़ाली नीड़ों को
सुबह की खुलती आँखो ने
शामों  के मंजर दोहराये

पाता हूँ वहाँ जहाँ छोड़ चला था
हाथों की सूनी सांसो को
आँखों से जो बह नहीं पाया
मन ने वो मंजर दोहराये

देखा है वहाँ जहाँ छोड़ चला था।
भूले रिश्तों की कसक रही है
गुजरे सालों के कोनों पर
खोने की एक पीड़ रही है

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