हारा सा लगता हूँ


सफर पर विराम मिले 
अब थका सा लगता हूँ 
जी लूँ कुछ यथार्थ 
वरना हारा सा लगता हूँ 

जो गिने गए अपनों में 
क्यों वीराने से लगते हैं
कहना था सब कुछ जिनसे 
वो गुमशुम से लगते हैं 

राह अकेली राही था 
साथ न तेरा माँगा था 
साथ मिला जिनका पलभर 
सब खोये से लगते हैं 

जग से हारा हार न माना
खुद से हारु ये डर है
मानक शर्तें मुझ तक हैँ
सब मुझे निभाने दे साथी !

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