तु नादां

पहले तो सादगी ने लुभाया हमें 
फिर सच से चेहरे यूँ बहकाया हमें
स्नेह का रोग मन  को न था
एक नादां ने अब ये सिखाया हमें 

पहले नज़रें झुकाकर बुलाया हमें 
फिर दोस्तों की जहालत बनाया हमें
सच से जीने का हुनर तो पता था हमें
झूठ को पर लगाना  सिखाया हमें 

पहले अंजान अपनापन दिखाया हमें 
फिर दूरियों को परिभाषित कराया हमें
साथ रहने की क़समें न खायी मगर
साथ रहना अकेले में सिखाया हमें 

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