विश्वासों के पुल

 

गिर ही जाते हैं सब पत्ते एक दिन 

सूखे पत्तो में ऐसे  जीवन तो नहीं 

पूछ ही लेता हूँ वो चार शब्द फिर 

जब भी लगा कि तु उदास तो नहीं 


उन्मादों की लहरें सब बहा ले जाती है 

कौन अहसासों की मुंढेर पर देर बैठा है

किनारों पर खड़ा, देखना शुकूं देता है 

विश्वासों के पुल जुड़ें रहें यहीं काफी है 


नदी के बहने का दुःख कब किसे होता है 

बहकर ख़ुशी देना उसका जीवन होता है 

वो भॅवर एक छपछपी दे गया है जीवन को 

यूँ हर बार डूबना कभी चाहता कौन है 

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