वो तीन रूपये के आम (लघु कहानी )

 

वो तीन रूपये के आम 

बात तब की है जब में कक्षा चौथी में पढ़ता था, घर से २०-२५ किलोमीटर दूर एक छोटे से क़स्बे भीरी के प्राथमिक विद्यालय में चाचा जी की स्कूल में पढ़ता था । वैसे तो मेरे गांव में और आसपास  स्कूलें थी पर चाचा जी के  प्रेम और माँ - बाबा की अच्छी शिक्षा की खातिर चाचा जी वाले स्कूल में दाखिला दिलवाया गया था । एक रूटीन था कि सोमवार कि सुबह घर से आते थे और शनिवार कि शाम हमेशा घर जाते थे । सप्ताह भर उसी छूटे क़स्बे के स्कूल में पढ़ाई , मकान मालिकिन बुआ के बच्चों गीता और रैबा के साथ खेलना,   क़स्बे कि नहर में नहाना और शाम होते ही चाचा जी का पढ़ाई की कुर्सी पर बैठना यही अक्सर दिनचर्या थी।  क्योकि चाचा जी उसूलों वाले मेहनती शिक्षक थे इसलिए क़स्बे भर में उनकी क़द्र थी और मुझे सबसे ज्यादा ही प्यार दुलार भी मिलता था।  

जब भी सोमवार की सुबह घर से चाचा जी के साथ स्कूल के लिए निकलना होता था तो माँ अक्सर हाथ में दो रुपये रख जाया करती थीं जिसे मैं अक्सर अपने गुल्लक में जमा कर दिया करता था । एक सोमवार दौड़भाग में ज्यादा मनाने के लिए माँ ने पांच रुपये दे दिए ।  दो - तीन किलोमीटर जंगल के कम दूरी के रास्ते को पार कर फिर लोकल बस से जैसे तैसे समय पर स्कूल पहुंचे । उस दिन महीने की १५ तारीख थीं जिसमें चाचाजी स्कूल के  बच्चों की फीस जमा करने के बाद काफी देर स्कूल में ही रुकते थे । गीता और रैबा के साथ मैं  किराये के मकान पर आ जाता था।  क्योकि उस दिन मेरे पास पांच रुपये थे तो सोचा की तीन रुपये के तीनो के लिए क़स्बे की दुकान से आम ले लेते हैं और दो रुपये गुल्लक में डाल देंगे।  

पर ये क्या क़स्बे की फल के दुकानदार जो मुझे एक आम अक्सर प्यार से फ्री में दे देते थे , उन्होंने तीन रुपये के करीब १२-१५ छोटे लोकल मीठे आम दे दिए । ये मेरे लिए बड़ी समस्या थीं क्योकि हमने तो तीन आम समझकर खरीदे थे और वहाँ लाला जी ने ढेरों आम दे दिए ।  एक - एक आम खाने के बाद बाकि बच्चे आम कमरे पर ले तो गया पर दर लगा रहा की कहीं चाचा जी ने पूछ लिया कि इतने आम कहाँ से लाये ? और डांट दिया तो ? । 

मकान मकान मालकिन बुआ अक्सर होने बच्चों के साथ मुझे भी खाना खिला देती थीं और खाना खाकर में सो गया । चाचा  जी हमेशा शाम को ये कहकर उठाते थे कि " जो सोवत है सो खोवत है जो जागत  है सो पावत है"। उठते ही वो डर मन में घर कर गया कि चाचा जी अभी पूछेंगे कि इतने आम कहाँ से लाये ? चाचा जी कुछ नहीं बोले न कहीं आम दिखे । उस शाम खेलने में मन नहीं लगा न ही पढ़ाई में , न रात के खाने में न दिन भर स्कूल में  । 

डर यही था कि आम कहा गए ? और चाचा जी क्या कहेंगे ? दिन में चाचा जी के साथ ही घर लौटा , रास्ते में आम वाले लाला जी कि तरफ देखा  भी नहीं  ।  घर पहुँचते ही पास के नल से नहाने के बाद जब वापस आया तब चाचा जी ने पूछा " इतने आम क्यों लाये कल ? बड़ी बाल्टी में पानी में रख दिए थे कल , अब खा लो एक- दो । तब चाचा जी खूब हँसे थे । वो आम हमने उस पूरे सप्ताह खाये पर उन यादों कि मिठास आज तक है ।

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