मीन्नतें

वो उसके नाम की कभी

कहीं मीन्नत नही माँगी 

वो तालों में दिवारों में 

कहीं फ़रियाद नही माँगी 

जो हिस्से में लिखा मेरे

मुझे मिलता रहता हरदम

कोई ख्वाईश अधूरी सी 

कोई सपना अधूरा सा ..

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