तटबंध

 तू भी न आया  मुझसे भी न जाया गया 

शायद कहीं सीमाएं टूट न जाय स्नेह की 

इसलिए उन्मादों के तटबंध नहीं तोड़े जाते 


तुझसे भी न झाँका गया मैं भी लाँघ न पाया 

जिज्ञासाओं के माकन छूए नहीं जाते कहीं 

इसलिए दिवार अनुभूति की पार की नही जाती  


तुझसे भी न कहा गया मैं भी सहमा सा रहा 

कहीं दायरे खुद को खींच न लें नजरों के 

इसलिए असर मनों के दिखाए नहीं जाते 


तुझसे भी न लिखा गया मेरी भी सीमाएं रही 

कहीं भावनाओं का बिखराव देख न लें सभी 

इसलिए हर बात कहीं भी नहीं  जाती 

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