तु गुमशुम सा रहता है

 नदी हिमालय जंगल झरने सा तु मन में रहता है 

कविता गीत ग़ज़ल सा मन लिखता तुझको पढ़ता है 

अपने पराये बन्धन से मन अलग खडा ही रहता है 

भीड़ भरे कोलाहल मन में तु गुमशुम सा रहता है


निंदिया  चंदा सात समंदर सा तु दूर ही रहता है 

पंछी चिड़िया मंद हवा सा मन तुझ तक ही उड़ता है 

बसने उड़ने से अलग कहीं मन बीज पड़ा तु रहता है 

ख़त्म हुई सब आस के मन में तु गुमशुम सा रहता है


सड़क सफर उम्मीदें मंजिल तु चलता ही रहता है 

माँ ममता बचपन दादी सा मन में तु ही रहता है 

पाने खोने से पहले कहीं मन तुझ तक ही तो जाता है 

छूटे बिछड़े खोते  मन में तु गुमशुम सा रहता है 

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