रोना सा चाहता हूँ

 

तु  बरसो बाद कहता है  तुझे ये डर सताता है 

कहीं मैं तोड़ ना दूँ सीमा तु शायद ये समझता है 

जिसने बरसो जगाया है वो अब देरी से सोता है 

असर तुझ पर भी बरसों का अब थोड़ा सा दिखता है ।।  


तु मन का वो शिवालय है जिसे बरसो नहीं देखा 

ना माँगा है कभी तुझको तुझे पूजा मनों में है 

जिसे बरसों उकेरा है वो अब लिखता मिटाता है 

असर शब्दों का थोड़ा सा अब तुझ पर भी दिखता है ।।  


न जाने क्यों मनों की बात अब खुलकर मैं कहता हूँ 

वो शायद साथ है मेरे मैं जिस  पर गीत लिखता हूँ 

नहीं रोया मैं बरसों से मगर अब साथ  जो तेरा 

मैं रखकर सर तेरी गोदी में अब  रोना सा चाहता हूँ।। 

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