सांसो की खुशबु
इन सांसो की खुशबु में तु बसा हुआ है दिन भर
स्पर्श रहे वो मौन आलिंगन रचे लगे इस तन पर
तु गंगा पावन है मेरी रमी रही इस तन मन पर
जुग के दाग धुले से पाए जीवन के इस पथ पर
सांसो का गहरा होना और आवाज कोई दे जाना
उन हाथों की पकड़ रही या मन का कोना कोना
तुम माँ का जंगल सा लगा हर हिस्से का हक़ अपना
सब कुछ पाया सा लगता है जीवन के इस पथ पर
तेरे मन का एक समर्पण पाट गया खाई सब
कदम बढ़ाया एक ही है मीलों आया मंजिल पर
तु मंदिर की मूरत सी लगी छाप गयीं अंतर्मन पर
सब कुछ नया नया सा लगता है जीवन के इस पथ पर
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