बाह पसारे

 दिनों दिनों से सालों तक एक  लम्बा  रास्ता टोहा है 

नदियों के संग चला मैं बहकर उबड़ खाबड़ रास्तों पर 

ये तय था मुझको मिलना था अपने उसी समंदर से 

बरसों खड़ा रहा जो ताकता बाह पसारे चुप-चुप के 


सकुचाई शर्मायी बेल वो कोने सिमटी देखी है  

हाथ पकड़कर मेरा मुझसे हाथ छुड़ाती रहती है 

जेहन की बातें सुनकर वो दूर खड़ी हो  जाती है 

मन की सुन ले जब भी अपने बांह मेरे लग जाती है 


अब भी कोलाहल है मन में तूफान उमड़ते देखा है 

एक लहर जो पास आने को बरबस आतुर दिखती है 

एक तरफ सब त्याग हैं उसके वापस मुड़ने को कहती है 

खुद नाराज़ रही बरसों वो मुझे मानने लगती है 


मन जीवन में अमृत भर वो गीत मिलन समझाती है 

तोड़ न दे सीमाएं खुद की  मुझको कानून पढ़ाती है 

वह सकुचाई छुई मुई सी खुलकर थोड़ा सा कहती है 

डरी रही सहमी वो बरसों अब मुझे समझाती रहती है 

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