कमी सी लगी

 

वो कमी सी लगी आज बातों में भी जिसकी आदत लगी है अभी रोज भर 

यूँ तो बरसों तुझे गुनगुनाता रहा अब अकेला लिखा जाता है नहीं 


वो तो अब भी मैं यूँ बड़बड़ाता रहा कोई आवाज़ आयी है मन से कहीं 

यूँ तो बरसों जिसे सिर्फ तकता रहा अब अकेला चला जाता है नहीं 


वो तो आलाव थे यूँ जले ही रहे दूर थी एक लौं जो कि जलती रही 

यूँ तो बरसों मशालें लिए क्रांति की अब अकेला लड़ा जाता है नहीं 


वो जो पाया न था दूर ही जो रहा एक विश्वाश था पास आ ही गया 

यूँ तो बरसों जले दीप आशा के हैं अब अकेला जला जाता है नहीं 


वो जो मेरा नहीं जानता हूँ सदा आज उसने भी सबकुछ दिया है मुझे 

यूँ तो बरसों से तुझपर है हक़ एक सा अब अकेला जताया जाता नहीं 

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