तु एक मन्दिर है
ख्वाबों का एक मन्दिर है मूरत सी रखी तेरी उसमें
उस नदी किनारे पीपल पर ओढ़ी है लाल चुनर मैंने
उन माँ के काले धागों को बांधा है नज़र बचाने तक
वो पीपल तेरा साया है वो धागे तेरे अस्क रहे
तु मन में रमाया है ऐसे बचपन की मीठी यादों सा
आ फूल कोई खिलता देखें वो भंवरा भर ले माचिस पर
चिड़ियों के चूजों को दाना और जुगुनू को आटा देदें
सरसों के पीले खेतों में चल ठोर ठिकाना यूँ कर लें
जुगनू की चमक दिखी तुझमे फूलों सी वो एक कोमलता
उन लाखों सपनो के जैसा तु मिला है फिर इस जीवन में
आ स्वान को लेकर दौड़ चलें वो बछड़ा खोल लें खूटें पर
चल चढ़ें वो ऊँचीं डाल प्रिये और साथ तेरा ये निश्छल मन
सावन के झूलों पर झूलें और खो जाएँ अपने सब गम
ऊँची डाल का सपना तु वो बछड़े सा थोड़ा नटखट
उन पावन सलोनी यादों को तु फिर लेकर आया जीवन में
तु पूछ लें तु कौन मेरा तेरा क्या छाप रहा इस जीवन पर
तु हार जीत से बढ़कर है तु बचपन का हर एक स्वप्न मेरा
आ घुल मिल जा इस जीवन में खुशियों की 'डोज़' बढ़ा साथी
सब कुछ तुझसे माँगा है सबकुछ तुझसे चाहा है
ख्वाबों का एक मन्दिर है मूरत सी रखी तेरी उसमें
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