एक समर्पण मेरा भी

 एक समर्पण तेरा देखा  एक समर्पण मेरा भी 

हम गंगा के देश से एक अंजुरी भर संकल्प सही 


लाखों नगर बसे तीरों पर लाखों जन की आवत है 

धामों में तु एक रहा है द्वार हरी का  तुझसे है 

अर्पण तर्पण करके देखा आशाओं की पौध खिली 

ब्रह्मकमल तु रहा है मन का बाबा सा आराध्य वोही


कुछ इच्छाएं कल्क वासना मैलापन जो मुझमे है 

संगम शुद्धि तुझसे है तु देवो सा प्रयाग रहा है 

पिण्डन मुंडन करके देखा प्रीत यहाँ तक लायी है 

सरस्वती सा निराकार है  फिर भी साथ बहा है तु 


त्याग परिश्रम पोथी पुस्तक ज्ञान अधूरा मुझमे है 

जन्म मरण अब तुझसे है घाटों का अवधूत बना है  

बैरागी सन्यासी सा था आस यहाँ तक लायी है 

औगड़ सा ही रहा था ये मन तूने अनुराग सिखाया है 


खोना पाना तुझसे होगा बात विचार और निर्णय भी 

तु सम्पूर्ण रहेगा मन में आधे जीवन का पर्याय बना 

एक समर्पण तेरा देखा  एक समर्पण मेरा भी 

हम गंगा के देश से एक अंजुरी भर संकल्प सही 

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