शिलान्यास

 ये शिलान्यास हैं रिश्तों के 

कुछ स्तम्भ खड़े मजबूती से 

उथल पुथल कर बही जो नदियां 

अब  रिश्तों की गंगा बहनी है 


ये अर्धसत्य है जीवन का 

कुछ आधार रहे हैं तनमन से 

अनकहे द्वन्द जो टकराये हैं 

अब दरीबे सत्कारों के बिछने हैं


ये गुप्त मनन हैं भावों  के 

कुछ खुले रहे हैं ज्ञान चक्षु से 

लाखों परतें अंधियारी  सी 

अब चाँद कहीं कोने पर हैं 


ये गहराई का उत्खनन है 

कुछ समय लगा है गर्तों पर 

वो कूट  कूट कर पीसा है 

अब मिठास की चासनी है 


ये निष्कर्ष नहीं है जीवन का 

कुछ आध अधूरे रिश्ते से 

वो टुकड़ों टुकड़ों जोड़ा है 

अब पूरा क्षितिज हमारा है 

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण