छुपाते पूछते मुझसे

 लड़ता है मनाता है 

वो किस्से छोड़ जाता है 

जीवन की सरल की राहों 

को वो सपने दिखता है 

कहता मानता मेरी 

वो फिर भी यूँ सताता है 

सफर में साथ उसका है 

सफर सारा सुहावना है 


सुन्दर से सजीले लोग 

फूलों से पंख लगते हैं 

वो टूटे हो दबे कुचले 

घिसे या मोड जाते हों 

छुपाते पूछते मुझसे 

फिर सब कुछ बताते हैं 

वो जीवन की मिठासों में 

गुड़ चीनी से घुलते हैं


अपनों में परायों में 

शहर की शाम रातों में 

अचक से  मन में आते हैं

वो अलसायी सी सुबहों में 

मानते रूठते मुझसे 

फिर सब कुछ पूछ जाते हैं 

वो सांसो की गर्तों से 

अंतर्मन मै बसते हैं 

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