सब मान मेरी

 मैं वहीं शुभ रात्रि का सन्देश देता 

वो जहाँ पर रात को थे रात कहते 

तौर बदलें हैं उन्होंने मान मेरी 

सो करके जगता है वो अब सब मान मेरी 


मैं वहीं नजरों को उठने पर छुपता 

वो जहाँ पर मोड़ते थे चाल अपनी 

वह कदम ठिठके लगे सम्मान मेरी 

मुड़के वापस आ गया वो अब सब मान मेरी


मैं वहीं बातों को अधूरा रोक देता 

वो जहाँ पर फेर लेते थे होंठ अपने 

साँस रख दी साँस में वो शान मेरी 

कर गया सारा समर्पण अब सब मान मेरी


मैं इसी जीवन उन्ही  राहों मिलूंगा 

वो जहाँ गर छोड़ना कर्त्तव्य आगे 

जो मिला सर्वस्व बढ़कर आन मेरी 

कर गया माथे तिलक अब सब मान मेरी


मैं रहूँगा यूँ ऋणी उस आत्ममन  पर 

हो अधूरा ही सही हर साथ तेरा 

वो  बसा है मन लिए अभिमान मेरी 

खो करके अपना चैन तू पहचान मेरी 

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