रोम रोम

 उत्ताप पर सब रोक देते  

हम समर्पण कर गए 

साँस मिली है सांसों से 

रोम रोम आनंदित है 


छुईमुई से बिखर जाते 

अंग बाहें हैं समाते 

उरोज की ताजगी 

रोम रोम में खुशबू है 


अरु तक जाते कर न रोके  

स्पर्श नितंब जागते हैं 

उष्ण बदन की कामुकता 

रोम रोम समाहित है 


बैठ पालती बात विचारे 

समय क्यों रुकता नहीं 

शांत सरल बातें तेरी

रोम रोम उत्साहित है 


जीना जीवन सीखा गया 

खुद में खुद को भुला गया 

आज में जीना सिखाता है 

रोम रोम अभिभारित है 

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