कोई हिकमत है

 हिमालय छूँ के लौटा हूँ 

समुन्दर एक सपना है 

न बादल थे कभी मेरे 

न लहरें साथ मिलनी है 

ये तन्हा है सफर लम्बा 

तु कुछ पल साथ में रहना 


सालों मन में रखा है 

जुबान पर लौट आया है 

मन का एक निश्चय है 

कलम की कोई हिकमत है

रुकेगा कुछ समय लम्बा 

तु कुछ पल साथ में चलना 


आखों में जो हरपल है 

सांसे बंद हो तुझपर 

जिसे पाकर जमाना  है 

जिसे खोकर सिफर जीवन 

जमना है तेरे तीरे

तु कुछ पल साथ में बहना 

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