जरूरी था

 मनों के हैं ये  रिश्ते जो 

क्यों पश्चाताप हो हमको 

प्रेरणा तुम सबल मन की 

तुझमें  क्यों न सामऊ मैं 


मनों की हैं ये बुनियादें 

क्यों परेशां हों हम भी 

मिला है उस मकां पर तु 

जहाँ सब खो चुका था मैं 


मनों की ये जो ताकत है 

क्यों डरता है रे-मन तु 

वो तुझको याद रखता है 

जहां में अपने खोये भी 


मनों के ये उजाले हैं 

क्यों डरता अँधेरे से 

तु  मेरा है मैं तेरा हूँ 

जरूरी था मिलन अपना 

Comments

Popular posts from this blog

दगडू नी रेन्दु सदानी

कहाँ अपना मेल प्रिये

प्राण