ठहर जा साथ

 समर्पण है तेरा मुझको 
मैं संकल्पो से बँध आया 
तु नदिया साथ बहती सी 
मैं समुन्दर ठौर कर आया 
ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे  
मैं दरिया पार करके  ही निकल जाऊँ

चाहत है तेरी मुझको 
मैं भरोसे बाँध आया हूँ 
तु मंजिल साथ रहती सी 
मैं सफर में कौल कर आया 
ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे  
मैं पताका पीट करके ही निकल जाऊ 

उम्मीदें हैं बंधी तुझसे 
मैं रातों जाग आया हूँ 
तु उजाला शाम जगमग है 
मैं अँधेरा चिर कर आया 
ठहर जा साथ तु कुछ पल को तो मेरे  
मैं जीवन जीत करके ही निकल जाऊ 

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