बहूँ संग में
लहरों से अपनी लौटकर आ
मैं बिखरा हूँ रेती किनारे तेरे
आगोश में ले भींगो ले मुझे
मैं कण कण बिखरता बहूँ संग में
मैं बिखरा हूँ रेती किनारे तेरे
आगोश में ले भींगो ले मुझे
मैं कण कण बिखरता बहूँ संग में
खुशियों से अपनी सिमटकर के आ
मैं फैला हूँ गठरी को खोले तेरे
आगोश में ले समाकर मुझे
मैं पल पल सिमटता रहूँ संग में
जड़ों से अलग तू खिसककर के आ
मैं जमता हूँ मिट्टी पकडे तेरे
आगोश में ले छुपाकर मुझे
मैं क्षण क्षण रगंता रहूँ संग में
शाम ओ शहर रात कटती नहीं
कदम दर कदम इस सफर संग में
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