अंजुरी भर आकाश

 अंजुरी भर आकाश उठा लूँ
ख़ाली सी हथेली पर 
तू मेरी परछाई बन जा 
सुनसान सी ख़ाली राहों पर 

मद्धम से कुछ दीप जला लूँ 
घर के सुने कोने पर 
तू मेरी अंगड़ाई बन जा 
जगती सुबह शामों पर 

थोड़े से कुछ बीज छिटक लूँ 
ख़ाली हुए से गमलों पर 
तू मेरी आशा बन जाना 
उगती कोमल कोपल पर 

आ आलिंगन थोड़ा कर लूँ 
सांसों की उस खुशबू पर 
तू मेरी होकर मुझ में घुल जा 
बहती  सरिता जीवन पर 

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