तेरा साथ

मैं सफर की आखिरी
अंजान सी मंजिल नहीं
गीत रचती एक कविता
मैं समय सीमा नहीं
मैं सतत चलती हुई
छोटी नदी की धार हूँ
तु दे गया सम्पूर्णता जो 
उस आभास का पर्याय हूँ
पढा न गया जो कभी 
वो समय अभिलेख हूँ
तेरा तराशा पाषाण सा
तुझमें समाता साथ हूँ

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