गहराईयां नही

मैं इतना जरूरी कब था 
कि तु मेरे लिए जगा रहे रात भर
मेरी बातों में इतनी गहराई कहाँ 
कि तु सुनता रहे दिनभर
एक दिन यूही डूबना है मुझे 
खुद के आकाश में 
मैं जानता हूँ मेरा सफर 
मेरे बस का नही है
 वक्त भी तेरा है नजाकत भी तेरी 
और ये निजाम भी तेरा
मैं पहाडों से लुढका पत्थर हूँ
बस ये रोकना मेरे बस का नही

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