गाँव

शहर के शौर में गाँव विरान रहता है
यादें साथ चलती हैं सफर तन्हा सा रहता है
वो छूटी हैं मंजिलें कई कदम थकते नही मेरे
मैं गाँव हूँ साहब गाँव लौट आवूँगा

समुन्दर के आगोश ने दिया मुझको सहारा यूँ
समाया हूँ मैं जग सारा शूंकूँ की छाँव पायी है
पहाडों से उतरकर मैं बहाँ हूँ इस डगर पर ही
तु ही मंजिल रही मेरी तु ही मेरा निशां होगा


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